‘रूबरू रौशनी’

Posted by Gulshan Nandwani on May 11, 2020

7 मई को स्वाति चक्रवर्ती भटकल हमारे साथ 'अवेकिन टॉक्स' पर जुड़ी। स्वाति एक फिल्म निर्माता, गीतकार एवं संशोधक है | उन्होंने मशहूर भारतीय धारावाहिक ‘सत्यमेव जयते’ में सह-निर्देशक एवं मूल-अनुसंधानकर्ता की भूमिका निभायी। उनकी अगली फिल्म ‘रूबरू रौशनी जो 2019 में रिलीज़ हुई थी| इस फिल्म में क्षमापना की तीन सच्ची कहानियों का आलेख है, जिसके अंतर्गत लोगों ने अपने पिता, बच्चे या किसी अन्य करीबी परिवार वाले के हत्यारे को क्षमा प्रदान की. फिल्म ने बहुतों को छुआ और क्षमा एवं प्रेम की तरंगे प्रवाहित की| इस टॉक में स्वाति ने अपनी जीवन की कहानियाँ एवं क्षमापना के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला। हमें बहुत ख़ुशी है आपसे इस बातचीत के कुछ मुख्य अंश बांटने में:



स्कूल और कॉलेज के दिन

  • मैंने कई बार स्कूल बदले | एक स्कूल ऐसा भी था जिसमे बच्चों को बहुत सज़ा मिलती थी| आज भी वो याद करती हूँ तो ऐसा लगता है की ऐसे सज़ा पाना एक दुःख भरा अनुभव था |
  • बचपन का माहौल बच्चों के व्यक्तित्व को बहुत हद तक संवारता है। अगर शांति, सुख एवं मैत्री का माहौल मिलेगा तो बच्चों पर भी असर होगा | कोई भी कट्टर, या खूनी पैदा नहीं होता | धीरे- धीरे बच्चों की विचारधारा बनने लगती है |आप शायद जान भी नहीं पाएंगे की आपके साथ ऐसा हो रहा है, या आपके द्वारा किसी मे हिंसात्मक विचारधारा जन्म ले रही है|
  • जब मैं कॉलेज में थी, उस वक़्त मेरे पिता को किसी गलत मुक़दमे में फसाया गया था. मैं उस दौरान कोर्ट-कचहरी के चक्कर में लग गयी, और दुनिया की कई नए पहलू मेरे सामने आये. वह हमारे परिवार के लिए बहुत मुश्किल वक़्त था. मेरे भी औरो की तरह कामयाब होने के सपने थे, पर सब कुछ बिगड़ने लगा था इस समय. हालांकि अपने इस अनुभव के कारण मुझमे औरो की पीड़ा के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी.
  • कॉलेज में अतिथि- वक्ता फर्नांडिस के भाषण से यह सीखा, कि ऐसा भी रास्ता हो सकता है जो केवल पैसे कमाने से न जुड़ा हो, खुद के करियर से न जुड़ा हो। उस भाषण से आँखें खुली, और समाज के लिए कुछ करने की इच्छा जागी | उनका मुझपर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि अब मुझे लगता है जब भी मौका मिले तो हमें युवाओं से ऐसी बातचीत करनी चाहिए, हमें परामर्शदाता बनाना चाहिए।
  • मेरी पहली नौकरी दिलाने में मेरे दोस्त ने मदद की और मेरे ऑफ़िस के सहयोगियों ने कैसे काम करना, वो सिखाया। उनकी मदद से मुझे आत्म- निर्भर होने का और खुद का जुनून , उत्साह के पीछे जाने का मौक़ा मिला।


दुसरो के भले के लिए नहीं, खुद के भले के लिए क्षमा करना अच्छी बात है
  • माफ़ करना खुद के लिए अच्छा है।बाहर की दुनिया पर हम क़ाबू नहीं कर सकते पर हम खुद की प्रतिक्रिया पर काम कर सकते हैं। आप अपने अंदर ग़ुस्से को लेकर व्यस्त रहना चाहते हैं या जीवन में सुख-पूर्वक आगे बढ़ना चाहते है?
  • “क्षमा न करके द्वेष में जीते रहना इस प्रकार है, जैसे हम ज़हर खुद पी रहे हैं और उम्मीद लगाए बैठे है कि मर हमारा दुश्मन जाएगा” रेव. टी डी जेक्स
  • क्षमा का उद्देश्य भुला देना नहीं है, बल्कि उद्देश्य है की जो आपके साथ हुआ है उससे रूबरू होना| जो दर्द हुआ है, उसे जानना । फिर उस ज़हर को अमृत बनाना है। हर इंसान की अपनी यात्रा होती है यह जानने, स्वीकारने एवं उसे अमृत में परिवर्तन करने की.
  • जैसा की मैंने कहा, मुझे नहीं लगता की कोई एक जवाब या नुस्खा सभी इंसानों के लिए हो सकता| तो ऐसा भी नहीं कहूँगी कि कुछ भी हो जाए, आपको माफ़ करना ही पड़ेगा| मैं बस इतना कहूँगी की अपनी अंदरूनी शांति के प्रश्न को गहराई से देखें एवं समझें|.

हिंसा से किसी को बेहतर बनाना मुमकिन नहीं
  • घृणा एवं हिंसा एक हमें एक दुष्चक्र में ढकेल देते है - "ईंट का जवाब पत्थर से" हमे उस हिंसा की कड़ी से निकलने नहीं देता. लमबे समय से मैं इस सवाल से जूझती रही. फिर एक दिन मैंने अखबार में एक घटना पढ़ी की कैसे एक लड़की ने अपने पिता के हत्यारे को क्षमा किया। उस दिन मुझे समझ आया की क्षमा से इस चक्र से निकला जा सकता है. इस बात को लोगो तक पहुंचना मेरे जीवन का एक अहम् कार्य बना.
  • हम हर इंसान पर एक लेबल लगा देते हैं। ये इंसान अच्छा है, ये बुरा है, ये होशियार है ये बेवकूफ़ है। पर लेबल किसी भी इंसान की पूरी सच्चाई नहीं दिखा सकता |हम सब के भीतर अच्छाई और बुराई है | जब ये बात समझ आई तो ही खुद के अंदर की गन्दगी देख पाई।
  • गुनहगारों को सजा देने की प्रथा से अगर उनमें बदलाव नही आता दिख रहा, तो हमें कोई दूसरा रास्ता सोचना चाहिए। मेरे पास कोई सरल- सटीक नुस्खा नहीं है ।कोई देवता या कानून नहीं आएगा, जो दे सके ऐसा नुस्खा। हम बातचीत कर सकते हैं। हम ऐसी जगह, ऐसा वातावरण, बना सकते हैं, जहाँ दोनो पक्ष आपस में बातचीत कर सकें।

खुद को क्षमा करना
  • खुद को क्षमा करना तो मूल है, इससे आपकी क्षमा करने की यात्रा की शुरुआत होगी।
  • क्षमा एवं प्रेम, दोनो एक दुसरे के पूरक है।खुद को क्षमा नहीं करते तो खुद से प्यार नहीं कर पाते। खुद से प्यार नहीं कर पाते तो दूसरों से प्यार कैसे करेंगे?

मेरी हीलिंग की यात्रा
  • जब मैं मायूस होती हूँ , मै स्वीकार कर लेती हूँ कि मैं इस वक़्त मायूस हूँ| उस समय रो लेती हूँ, दोस्तों को कॉल भी कर लेती हूँ। फिर सकारात्मक चीजों पर ध्यान ले जाती हूँ। कहीं न कहीं से प्रेरणा मुझ तक पहुंच ही जाती है|
  • जिन दो लोगों ने बचपन में मेरा शोषण किया, एक की मृत्यु हो गई है और दूसरा वृद्धावस्था में हैं| दूसरे को मैंने पत्र लिखा “आपके उस कर्म को स्वीकार करने की कोई उम्मीद नहीं कर रही हूँ। पर इस बोझ से मैं खुद को मुक्त कर रही हूँ। मैंने आपको माफ़ किया”। मेरे साथ घटी इस दुर्घटना को मैंने सीढ़ी बनाया, उसके ऊपर चढ़ कर मैंने जीवन में ऊँचाई को प्राप्त किया |
  • सत्यमेव- जयते में कन्या भ्रूण वाले एपिसोड बनाते वक़्त मैंने जो जो देखा, उसने मुझे झकझोर कर रख दिया था | उसके बाद खुद को स्थिर करने की आशा से मैं दस दिन के विपस्सना शिविर में गयी थी| ध्यानी या तपस्वी तो बिलकुल नहीं, पर कभी जो थोड़ा ध्यान लगा पाती हूँ, उसका ज़रूर लाभ मिलता है मुझे।
  • निजी जीवन में कुछ बातों की वजह से नकारात्मकता थी पर लोगों की कहानियों से प्रेरणा मिली। हम सब का जीवन एक कहानी ही तो है। हम पूरे ध्यान से एक दूसरे की कहानी सुनें, सारी कहानियों को इकट्ठा करें, उन कहानियों से सीख लें तो शायद हमारे कई मुश्किलें हल हो सकती हैं। कहानियों में ये ताक़त है क्योंकि हम सब ने अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ अनुभव किया है। वो अनुभव से हम सीख सकते हैं।
  • “जख्म की जगह से ही प्रकाश तुम्हारे भीतर आता है” - रूमी
  • उम्र और दूसरों के अनुभव ने सिखाया कि न खुद दुखी होना है न दूसरों को दुखी करना है।


मुझे क्या जिंदादिल बनाता है
  • मेरी जीवन में जो ‘प्रिविलेज’ ( विशेषाधिकार) हैं, मुझे कुछ मिला है, जैसे मेरी पढ़ाई, या मेरी प्रतिभा, या कोई साधन, तो उसे समाज को बांटने की कोशिश करती हूँ।
  • मुझे दूसरों की कहानी में अत्यंत दिलचस्पी है। लेकिन मैं लोगो को ज़्यादा आंकती नहीं, मेरा ऐसा मानना है गुनाह या गलती आपसे, मेरे से, किसी से भी हो सकती है। यह बहुत हद तक इत्तेफ़ाक का मुद्दा है और एक लंबा, पेचीदा मुद्दा है | अगर में कचहरी के जज का चेहरा लेकर बैठूँ तो क्यों मेरे से कोई बात करेगा? खुद को खुला रखो तो सामने वाले का लेबल भी हट जाता है, उसके अंदर का इंसान बाहर आ जाता है।
  • हम जो ज़िंदगी जीते हैं वो हमारी सबसे बड़ी कहानी है। मेरी ज़िंदगी ही मेरी कहानी है।

बहुत उदारपूर्वक स्वाति ने समापन के तौर पर हमसे अपनी प्रिय कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की कुछ पंक्तियाँ साझा की “ जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे, एकला चलो, एकला चलो, - एकला चलो, एकला चलो रे” - भले ही कोई आपकी पुकार न सुने, आप चलते रहे. अगर आप अकेले भी पड़ जाए, फिर भी चलते रहे, चलते रहे, चलते रहे.


पाठको के चिंतन के लिए प्रश्न - किसी के गलत व्यवहार को माफ़ करने के भाव से आपका क्या सम्बन्ध है? क्या आप अपने रोजमर्रा जीवन की एक कहानी साझा कर सकते है जब आपने क्षमा प्रदान की हो या क्षमा पायी हो? क्षमापना के अभ्यास में आपके लिया क्या अनुकूल है?

Posted by Gulshan Nandwani on May 11, 2020 | permalink


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Previous Comments
  • Nipun Mehta wrote ...

    Wah, Hindi!? And Drishti, no worries, I'll help translate for you. :)

  • Ashima Goyal wrote ...

    yay!!! our very first Hindi post! :-) Thank you Gulshan bhai!

  • Gulshan Nandwani wrote ...

    Honestly it is not written by me, I just shared some nuggets from the talk of Swatiji with Paragbhai! But ya, it feels great to see my name on service space website page:))
    Thank you so much!
    I think I can help in translating this story into English, ,though I haven’t translated anything till now...

  • Rohit Rajgarhia wrote ...

    Movedbylove is officially now "pyaar se hil gaya."

  • Govind Jhawar wrote ...

    It was a fantastic talk. Deep Learning !!!!